दो प्रकार के मार्ग हैं – ‘प्रवृतिमार्ग’ वैवाहिक जीवन वाला मार्ग एवं ‘निवृतिमार्ग’ अथवा अविवाहित जीवन वाला अर्थात् त्याग वाला मार्ग। सामान्य लोग ‘प्रवृतिमार्ग’ के लिए योग्य होते हैं। वे लोग ही संन्यासी जीवन को बिताने में समर्थ होते हैं जिन्होंने अपने मन में ये बिठा लिया है कि वे कभी भी वैवाहिक जीवन में नहीं जाएँगे। जहाँ तक आपके अपने विवाह से सम्बन्धित निर्णय की बात है, इस बारे में आपको अपने माता-पिता की राय लेनी होगी क्योंकि वे आपकी मानसिक व शारीरिक स्थिति को अच्छी प्रकार से जानते हैं।
आपको इस निर्णय को लेने के लिए प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए कि भविष्य में आपको गृहस्थ-जीवन में जाना है या संन्यासी-जीवन में। आपको तो अतिशीघ्र भजन (पवित्र हरीनम का कीर्तन, दस नामापराधों का वर्जन करते हुए) प्रारम्भ कर देना चाहिए क्योंकि कोई नहीं जानता कि हमें इस जगत् को कब छोड़ देना पड़ेगा। जब श्रीमद् रघुनाथ दास गोस्वामी इस भवसागर को पार करने के लिए अत्यन्त उत्सुक थे, भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु ने सर्वप्रथम उनको यह कह कर शांत किया कि उन्हें इस तरह की उतावली करके पागल नहीं बनना चाहिए। अभी तो उनको शांत मन से अपने घर में रहना चाहिए। जन्म-मृत्यु के इस भवसमुद्र को कोई भी व्यक्ति एक सांस में पार नहीं कर सकता। इसमें समय लगता है ̶ धीरे-धीरे ही वह इस पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। रघुनाथ दास गोस्वामी जी को महाप्रभु जी ने कहा कि तुम्हें बाहरी तौर पर सांसारिक कार्यों से अपने को तटस्थ दिखने का प्रयास नहीं करना चाहिए बल्कि तुम्हें तो आन्तरिक भाव से श्रीकृष्ण का भजन करना चाहिए तथा बाहर से संसार के प्रति वैराग्य का भाव रखना चाहिए। ऐसा करने से श्रीकृष्ण जल्दी ही तुम्हें भाव-तापों की वेदना से बचा लेंगे। मैं सोचता हूँ कि अभी इस समय आपको निवृतिमार्ग पर चलने की सलाह देना ठीक नहीं होगा। निवृतिमार्ग किसी पर थोपा नहीं जा सकता। यह तो स्वतः ही स्वाभाविक रूप से होना चाहिए। जब आपके अन्दर श्रीकृष्ण के लिए तड़पन होगी तब तुम्हें पता भी नहीं लगेगा कि यह कैसे तुम्हारे अन्दर प्रकट हो गया है। तब तुम्हारे द्वारा संसार का त्याग स्वतः हो जाएगा। ऐसा किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के द्वारा तय नहीं हुआ करता।