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दुखों के मूल कारण के विषय पर

दुखों के मूल कारण के विषय पर

श्री चैतन्य गौड़ीय मठ के वर्तमान आचार्य श्री श्रीमद भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी !

 

हम बंधन में हैं और हमें तीन प्रकार के ताप सता रहे हैं; इस बात से सिद्ध होता हैं कि हम भगवान श्रीकृष्ण से विमुख हो गए है | हमारे दुखों का मूल कारण यह हैं कि हम श्रीकृष्ण से अपने नित्य संबंध को भूल गए हैं |

 

 

वे जीव जिन्होने अच्छे कर्म किए हैं, जो भाग्यशाली हैं, वे सच्चे साधु (शुद्ध भक्तों ) के साथ संपर्क स्थापित करते हैं और अपने स्वरूप को जान लेते हैं कि वे भगवान श्रीकृष्ण के नित्य दास हैं और जब वे नित्य संबंध को भूल जाते हैं तो माया के जाल में फंस जाते हैं | अगर अब वह भगवान श्रीकृष्ण के पादपदमों में पूर्ण रूप से शरण ले लें तो वे बच जाएंगे | जीव आध्यात्मिक परमाणु कण हैं- वे सोच सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं, तथा इच्छा कर सकते हैं | अपनी अणु स्वतन्त्रता के दुर्व्यवहार से ही भगवान श्रीकृष्ण विमुख जीवों की अणु स्वतन्त्रता को नाश नहीं करना चाहते, क्योकि ऐसा करने से जीवों का मुख्य उद्देश्य और उनका जीवन समाप्त हो जाएगा | इसलिए श्रीकृष्ण और उनके भक्त हमेशा जीवों को परामर्श देने की कोशिश करते हैं और उन्हे समझते हैं ताकि वे स्वेच्छा से उन श्रीकृष्ण की शरण में आ जाएँ |

 

हम यह नहीं जानते कि हम भगवान से कब विमुख हुए ? हम नहीं जानते कि अमुक तिथि से हम श्री भगवान (जो हमारे सर्वोत्तम नियंता हैं ) से विमुख हुए |

 

हम श्री कृष्ण से अपना नित्या संबंध अनादि काल से भूले हुए हैं | जब हम अपने आंशिक स्वतन्त्रता के दुरुपयोग से श्रीकृष्ण से विमुख हुए तो भगवान श्रीकृष्ण की बहिरंगा शक्ति से हम घिर गए और तब से हम जन्म-मरण के अनगिनत चक्र में पड़े हुए हैं |

 

हम अपने ही अच्छे व बुरे कर्मों का फल भोगते हैं | हमें जो कष्ट अपने कर्मों की वजह से मिलते हैं उसके लिए दूसरों को दोष देना ठीक नहीं हैं | दूसरे व्यक्ति निमित हो सकते है, कारण नहीं | जिन कर्मों (प्रारब्ध कर्मों ) के परिणाम आरम्भ हो चुके हैं, जीवों को उन्हे सहन करना चाहिए चाहे वे त्यागी हो या गृहस्थी |

 

केवल मात्र शुद्ध भक्ति या शुद्ध नाम ही हमारे प्रारब्ध कर्मों के फल को नाश कर सकते हैं |

 

हरेक व्यक्ति को अपने अच्छे या बुरे कर्मों का फल भोगना ही पड़ता हैं | अपनी कठिनाईयों के लिए दूसरों को दोष देना गलत हैं |

 

नित्य शांति को प्रपट करने का सर्वोत्तम साधन हैं- श्रीकृष्ण और उनके अभिन्न प्रकाश श्रील गुरुदेव जी के पादपदमों में पूर्ण रुपेण एवं एकांतिक आत्मसमर्पण | हमें किसी भी हालत में या किसी के भी उकसाने पर चंचल नहीं होना चाहिए | परतत्व भगवान श्रीकृष्ण और श्री गुरुदेव हमारी रक्षा करेंगे |

 

चौदह भुवनों का ये ब्रह्मांड उन कैदी जीवों के लिए क़ैदख़ाना हैं जो परम श्रेष्ठ श्रीकृष्ण की सेवा से विमुख हो गए हैं | जीव अपने वास्तविक स्वरूप से भगवान श्रीकृष्ण की सेवा से कतराते हैं | श्रीकृष्ण की महामाया (बहिरंगा शक्ति ) ने उन अपराधियों को सज़ा देने के लिए इस मायिक ब्रह्मांड की रचना की हैं |

 

कैदी इस ब्रह्मांड रूपी कैदखाने में शांति प्राप्त करने की आशा नहीं कर सकते | हमारे दुखों का मूल कारण भगवान श्रीकृष्ण से अपने संबंध को भूल जाना हैं | इसलिए अपने दुखों, त्रितापों के मूल कारण को समाप्त करने के लिए हुमें पूर्ण रूप से तथा एकांत भाव से भगवान श्रीकृष्ण में आत्मसमर्पित हो जाना चाहिए |

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